Wednesday, September 22, 2010

तुम जो मेरे मीत बन गए

तुम जो मेरे मीत बन गए
शब्द- शब्द से कविता फूटी
अक्षर- अक्षर गीत बन गए.

तुम बिन कुछ ऐसा था जीवन
जैसे  बिन चेहरे के दर्पण
जैसे धूल भरी  दोपहरी
जैसे बिन बारिश के सावन.

तुम जो मिले, मिल गए सुर-लय
हम भी एक संगीत बन गए.


 

4 comments:

  1. इसको थोड़ा और बढ़ाइए
    http://veenakesur.blogspot.com/

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  2. Kaash!Aisa sabhike jeevan me ho jaye! Kitni sundar kalpana hai!

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  3. सुंदर प्रयास|आपके अन्दर कवित्व के अंकुर विद्यमान हैं|ये फूलें-फलें| शुभकामनायें |
    - अरुण मिश्र.

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  4. कवित्व के जो अंकुर आप में हैं वे फलें-फूलें|नवरात्रि की शुभकामनायें|
    - अरुण मिश्र.

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