Saturday, November 26, 2011

बीज प्यार के बोयें हम.

आज जो ये दिन बीत रहे हैं
लम्हा- लम्हा रीत रहे हैं.
बातें हैं, मुलाकातें हैं
यह सब कल की यादें हैं.

आओ इन्हें संजोये हम
बीज प्यार के बोये हम.

फिर न वक्त हमारा होगा
कुछ भी नहीं दुबारा होगा.
हर एक पल जीभर जी लें .
जीवन मधु छककर पी लें .

समय व्यर्थ न खोएं हम
बीज प्यार के बोयें हम.

जीवन हो निरभ्र, निर्भार
जैसे खुशबू, हवा, सितार
अहंकार के कंकण-पत्थर
बोझ बने  बैठे छाती पर

और न इनको ढोएँ हम
बीज प्यार के बोयें हम.